Thursday, June 11, 2015

आज बिहार में "आम आदमी (यूनाइटेड )" नाम से एक राजनैतिक पहल की आवश्यकता क्यों?

मानव जाति अपने बेहतरी के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है।लाख विफलताओं के बावजूद वह प्रयास नहीं छोड़ता है जबतक सफलता न मिल जाये। ज़िन्दगी एक सतत संघर्ष है। 

जनलोकपाल बिल के समर्थन में अन्ना एवं उनके युवा अनुयायिओं के द्वारा शुरु किये गये आन्दोलन की शुरुआती सफलता से लेकर आम आदमी पार्टी के दिल्ली में सत्ता हासिल करने तक लोगों में एक आशा बंधी थी कि शायद एक असली प्रजातान्त्रिक, वैकल्पिक राजनीति का जन्म हो गया है जो भारत को भ्रस्टाचार मुक्त ही नही करेगी बल्कि आम आदमी को सत्ता पर बिठा देगी। प्रारंभ में आम आदमी पार्टी के राजनैतिक दृष्टिकोण और उद्देश्यों के बारे में कुछ लोगों ने आशंका जताई थी, परन्तु राजनैतिक रिक्तता और घोटालों के बड़े बड़े ख़बरों ने मध्यवर्गीय समाज को इस नई पार्टी तथा उसके युवा नेता पर भरोसा करने को मजबूर कर दिया था। फिर जो कुछ घटित हुआ वो आप सब जानते हैं। आज आम आदमी पार्टी काँग्रेस, भाजपाजदयू और समाजवादी पार्टी जैसी ही एक पार्टी है जिसका नेता अपने एक छोटे गिरोह के जरिये सरकार और पार्टी चलाता है और चुनाव जीतने के लिए वह सब कुछ करता है जिसके लिए मोदी और अन्य नेता बदनाम हैं। इनके पास राजनैतिक विकल्प बनाने की न कोई इच्छा, न सोच और न ही कोई कार्यक्रम है। बस एक NGO की तरह ये जनता की सेवा (सब्सिडाइज्ड बिजली और पानीकर, ईमानदारी का मुखौटा लगाअपने हिसाब से सुर्ख़ियों में बने रहना चाहते हैं।दूसरी तरफ राजनैतिक विकल्प की चर्चा के सामानांतर ही  मोदी ने अकूत धन तथा मीडिया प्रचार के बल पर भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने का सपना दिखा तथा हिन्दुओं के रक्षा का एक बड़ा परिदृश्य खड़ा कर वोटों का ध्रुवीकरण करा सत्ता पर काबिज होने में सफल हुए। केजरीवाल और नरेंद्र मोदी दोनों एक ही राजनैतिक सिक्का के दो पहलू हैं जिनके कार्यक्रमों, शाशन करने के तौर तरीकों , खतरनाक व्यक्तिवादी रुझानों में नहीं के बराबर फ़र्क़ है। समाज में व्याप्त ढांचागत विकृतियां , गैरबराबरी , नौकरशाही का ओपनिवेशिक ढाँचा और वर्तमान राजनीती में व्याप्त सामंतवादी तौर तरीकों में व्यापक बदलाव लाने का कोई कार्यक्रम या इच्छा इन नेताओं में नहीं है।   मोदी और केजरीवाल कि सोच यह है कि  वर्तमान समस्याऔं का एक मात्र कारण इनका  सत्ता में नहीं होना था और अब जब वे सत्ता में हैं तो अपने विशेष इमानदारी तथा प्रशासनिक कार्यकुशलता और दक्षता से बिना किसी व्यवस्था परिवर्तन के जादूगरी कर गरीबी, पिछड़ापन,त्र्भष्टाचार सब कुछ ठीक कर देंगे। वैसे भी हमारा समाज  अधर्म के पराकाष्ठा पर होने पर अवतारों के आगमन की प्रतीक्षा करता है। इसलिए ही मोदी ,केजरीवाल  महान नायक बन, आप ही मेरे माई-बाप संस्कृति को आगे बढ़ा राज करना चाहते हैं. याने राजनितिक विकल्प निर्माण का नारा अब पृश्ठभूमि में ठेला जा चुका है और हम निरंकुश नौकरशाह तथा अपराधिक राजनीती द्वारा शोषित और उत्पीड़ित होने को अभिशप्त रह गए हैं। 

मोदी के अनुसार देश को विकसित करना बच्चों का खेल है। बस उन्हे विश्वभ्रमण कर लेने दें, और तब वे हमारे साठ लाख एकड़ जमीन पर औद्योगिक कोरीडोर बनामेक इन इंडीया का नारा लगादस करोड़ नौकरीयां पैदा करभारत को विश्वशक्ति बना देंगे। देश के पांच करोड़ धनी मध्यवर्ग को यह सपना बहुत भाता है क्योंकि ये बहुत ही महत्वकांक्षी हो गये हैं। वे पाँच सितारा सुविधा की आकांक्षा रखते हैं और इनकी दिली इच्छा है कि भारत विश्वशक्ति बन जाय। कितना हास्यास्पद। इस वर्ग का ध्यान शायद ही इस ओर जाता है कि भारत में 19 करोड़ लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ता है। 45 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र के मज़दूर हैं जिनकी औसतन कमाई 70रु प्रतिदिन है। 6 करोड़ परिवार याने 30 करोड़ लोगों के पास रहने के लिए जमीन तथा घर नहीं है; 75%  ग्रामीण किसी न किसी मापदन्ड पर वंचित हैं जबकि दूसरे तरफ पिछले बीस वर्षों के तेज विकाशदर ने तीन लाख करोड़पति तथा सौ विश्वस्तर के अरबपति पैदा किये हैं। हमारी अर्थव्यवस्था तीन ट्रिलियन डालर की हो गई है और देश के अस्सी करोड़ वंचितों में अभाव एवं दर्दनाक जीवन के कारण नागरिकता की चेतना तक नहीं पनप पायी है।

गिने चुने शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर बाँकी संस्थान और विश्वविद्यालय नाम मात्र की उच्च शिक्षा दे रहे हैं। प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा की हालत खास्ता है, जहाँ बच्चों को बहुत ही घटिया शिक्षा दी जा रही है। 90 प्रतिशत स्कूली छात्र मात्र साक्षर हो पाते हैं और थोड़ा जोड़ घटाव कर लेते हैं और उच्च शिक्षा के लायक तो कतई नहीं बन पाते हैं। और फिर वे सरकारी नौकरियों में में आरक्षण के प्रावधान का भी फायदा नहीं उठा पाते। जिस देश में बहुसंख्यक आदमी पेट तथा दिमाग दोनों से भूखा है, वह देश आर्थिक विश्वशक्ति  कैसे बन सकता है? अकुशल और बीमार मजदूर कैसे देश को महान् आर्थिकशक्ति बना सकते हैं?

देश के कार्यपालिका पर कब्ज़ा जमाये अफ़सरशाही निरंकुश और भ्रष्ट होता जा रहा है। वे इतने धनी हो गये हैं कि वे बड़े पूंजीपतियों के समान कालेधन के खजाने पर बैठे हैं। पिछले सड़सठ वर्षों में सरकारों ने प्रशाशनिक सुधार आयोग तो बनाए, लेकिन उनके अनुशंषाओं को लागू करने की ज़हमत किसी ने नहीं उठाई। साम्राज्यवादी देशों ने अपने यहाँ अफसरशाही में क्रन्तिकारी परिवर्तन किये, लेकिन हमारे यहाँ औपनिवेशिक व्यवस्था अभी तक कायम है। कलक्टर और दरोगा राजा की तरह हम पर शासन कर रहे हैं। 

विधायिका की हालत से हम सभी परिचित हैं। अभी अभी बिहार विधानपरिषद में 24 विधायकों के चुनाव में बीजेपी तथा जनता परिवार ने जिस तरह जनविरोधी, अपराधी धनाड्यों को टिकट बांटे और जिस प्रकार शर्मनाक तरीकों से वोटों का खरीद बिक्री हुआ यह हम सभी जानते हैं। सोचें, क्या यही प्रजातंत्र है ? संसद और विधानसभाओं में बैठे 70 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों, जिनका काम कानून बनाना और कार्यपालिका पर नज़र रखना है, उनको न तो कानून की समझ है, न समझने में रूचि है, और कार्यपालिका पर ध्यान वे मात्र अपनी कमाई बढ़ाने के लिए करते हैं। क्या मात्र पांच वर्षों पर एक बार चुनाव का उत्सव मना अपराधियों, जनविरोधी धनाड्यों, अयोग्य प्रतिनिधियों से संसद  और विधानसभाओं को भर देना ही प्रजातंत्र है ? 

आज का न्यायिकव्यवस्था देश के अस्सी प्रतिशत  आबादी को कोई न्याय नहीं दे पा रही है और वह तो मात्र न्यायाधीषों तथा अमीर वकीलों  के मौजमस्ती का एशगाह बनता जा रहा है। मुझे तो निकट भविष्य में न्यायिक व्यवस्था और प्रक्रिया में कोई सुधार के आसार नजर नही आ रहे हैं। न्यायपालिका में भी भ्रस्टाचार सरकार के अन्य विभागों के तरह ही है। हमें ऐसा न्यायिक व्यवस्था विकसित करना पड़ेगा जो अफसरशाही  तथा प्रक्रीयाओं  के जंजाल से मुक्त हो , और न्याय आसान और सुलभ हो ,जनता के नजदीक हो।

देश के संसाधनों (जमीन, जंगल, पानी) पर मिलकियत का ढाँचा अभी भी परंपरागत है जो भयंकर गैरबराबरी को कायम रखे हुए है, जिसकी वज़ह से बहुसंख्यक लोग संपत्तिविहीन, आवासविहीन, घुमक्कड़ समूहों और विस्थापितों के तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं। भूमिहीनता तथा आवासविहीनता के मामले में बिहार और आसाम की स्थिति सबसे बदतर है। आज़ादी के बाद से आजतक किसी सरकार (कांग्रेससमाजवादीभाजपा) ने कभी इस असमानता के प्राचीन ढाँचे को तोड़ने का प्रयास नहीं किया। ये लोग जमीनदारी उन्मूलन का दम्भ भरते हैं जो भूमि सुधार का एक साधारण कदम है, क्योंकि किसी भी गणतंत्र में जमीन्दारी व्यवस्था को कायम नहीं रखा जा सकता था। जमीन का मालिक तो अंततः सर्वभौम सत्तासम्पन्न राज्य ही होता है। उसके बाद भूमि सुधार का (खासकर बिहार में) कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया। हमें यह समझना चाहिये कि समाजवाद की बात तो छोड़िये, पूँजीवाद के विकास के लिए भी भूमि सुधार तथा सामंतवादी संस्कृति का खात्मा एक आवश्यक शर्त है। सामन्तवादी सम्बन्ध और संस्कृति न केवल भूमिहीनों को  नुकसान  पहुचता है, बल्कि पूरे समाज में एक लूट, दबदबा और दिखावे की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है। विश्वप्रसिद्ध पूंजीवादी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी का भी यह मानना है कि जहाँ सम्पदा पर मालिकाना हक़ का पुराना  गैरबराबरी वाला ढाँचा बरकरार है, वहाँ किसी भी तरह के विकास के मॉडल  से ज्यादा प्रगति नहीं हो सकता, और गरीबी दूर नहीं की जा सकती। सत्ता पक्ष के सभी राजनैतिक दलों के विकास का मॉडल करीब करीब एक समान है। सभी राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय नेता भौतिक ढाँचों के निर्माण तथा देशी विदेशी पूँजी के निवेश द्वारा औद्योगीकरण कर विकसित होना चाहते हैं। पिछले दस सालों में ऐसा कोई राज्य नहीं होगा जहाँ अप्रवासी भारतीय (NRI)  तथा विदेशी पूँजीपतियों का सम्मेलन  न हुआ हो, और मुख्यमंत्री कम से कम एक बार पूँजी निवेश के लिए विदेश न गया हो। लेकिन कुछ हुआ क्या? देश और दुनिया को आज एक नयी अर्थव्यवस्था चाहिए जहां स्थानीय बाजारें स्वायत्त  हों, जो विश्ववित्त पूंजी के बजाय जनधन के प्रभाव में रहे।अर्थव्यवस्था का केंद्रबिंदु उत्पादन करने वाला श्रमिक हो न कि कारपोरेट मालिक।वित्तीय पूंजी पर समाज का नियंत्रण अति आवश्यक है नहीं तो आने वाले विनाश से हम बच नहीं सकते। हम समाज को कॉर्पोरेट मालिकों के भरोसे उनके रहमो करम पर नहीं छोड़ सकते क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य किसी भी कीमत पर ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाना है जो जनविरोधी और विनाशक ही क्यों ना हो। 

आज नरेंद्र मोदी 25 लाख़ हेक्टेयर जमीन का जबरन अधिग्रहण कर, "मेक इन इंडिया" के तहत विदेशी पूंजीपतियों को लाकर, 10 करोड़ नौकरियाँ पैदा करने का सपना दिखा रहे हैं। अगर दस प्रतिशत जमीन पर भी औद्योगीकरण हो पाया, और 25 लाख नौकरियाँ भी पैदा की जाए, तो आश्चर्य की बात होगी। ये सारे सपने अविश्वश्नीय, पूर्णतः अव्यवहारिकऔर ठगने वाला है। हमें अपना आर्थिक मॉडल तैयार करना होगा। कृषि तथा जमीन की एक जनपक्षीय नीति बनानी होगी जिसमें  मिलकियत के ढ़ाचें का विकास कर कृषि को विश्वस्तर का बना किसान को लाभकारी मुल्य दिलाना होगा और उसके उत्पाद से जुड़े उद्योगों के लाखों क्लस्टर बनाने होंगे। निर्यात पर आधारित अर्थव्यवस्था विकसित करने के मॉडल से छुटकारा पाना होगा। 

आज हमारा समाज मात्र संविधान में अन्तर्निहित विचारों एवं सिद्धांतों से नहीं चल रहा है। सत्ता पर आसीन व्यक्ति जिन विचारों के अधीन है, वे विचार राजकाज में खुलकर हस्तक्षेप करते हैं। जैसे मोदी सरकार संविधान से ज्यादा आरएसएस के विचारधारा से चल रही है। साथ ही साथ समाज में जड़ जमाये विचार एवं मान्यताएं, जो परम्पराओं एवं सर्वस्वीकृत मर्यादाओं, रीति रिवाजों के रूप में स्थापित है, हमारे संस्कृतिजीवन पद्धति एवं सरकारी नीतियों को बहुत प्रभावित करते हैं, क्योंकि जनमानस पर इनका वर्चस्व है। जब इनका तार्किक एवं बौद्धिक विरोध शुरू होता है, जो अगर आंदोलन का रूप ले लेता है, तब ये धीरे धीरे ढहते हैं। ये विरोध और आंदोलन खड़ा करना बिलकुल राजनैतिक पार्टियों का उत्तरदायित्व हैजिसमे आज सत्ताधारी पार्टियों को कोई रूचि नहीं है। यहाँ तक कि कम्युनिस्ट पार्टियाँ, और अपने को वैकल्पिक राजनीती की जन्मदाता कहने वाली आम आदमी पार्टी को भी इस बात की मात्र सतही और दिखावे भर की चिन्ता है। जबतक जनमानस तथा समाज के ऊपर इन अतार्किकअवैज्ञानिकपाखंड और अन्धविश्वास से ओत प्रोत विचारों का वर्चस्व रहेगा, न तो वैकल्पिक राजनीति हो सकती है, और न किसी बड़े सुखद बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। पुराने विचारों को वैकल्पिक विचारों से बदले बिना वैकल्पिक राजनीति नहीं हो सकती। 

आज हमारे सामने सम्प्रदायवादी ताक़तों ने भयंकर सामाजिक अव्यवस्था, असहिस्णुता , कठमुल्लापन का दानव खड़ा कर दिया है और समाज धीरे धीरे गृहयुद्ध की ओर बढ़ता जा रहा है। अध्यात्म और धार्मिकता के नाम पर खुल्लम खुल्ला पाखंड और शुद्ध अपराध को राजनैतिक ताक़तों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। आज सत्ता पक्ष के किसी राजनैतिक दल के पास इस समस्या का कोई समाधान न तो उपलब्ध है और न ही वे इस ओर कुछ गंभीर प्रयास करना चाहते हैं।  बल्कि वे निर्लज्जता पूर्वक इस गंभीर परिस्थिति का राजनैतिक फायदा उठाना चाहते हैं।  धर्मनिरपेक्षता अप्रासंगिक और अर्थविहीन हो गया है। जितना ही नेतागण इस शब्द का जाप करते हैं , संकट उतना ही गहरा जाता है। आम सोच में मौलिक बदलाव लाये बिना सम्प्रदायवाद के दानव से नहीं लड़ा जा सकता है। 

ऊपर वर्णित परिस्थितियों में मात्र भ्रस्टाचार के विरोध में नारा लगाने, और कुछ सरकारी अफसरों को गिरफ्तार कर जेल भेजने से सामाजिक परिवर्तन नहीं हो सकता, और खासकर तब, जब भ्रस्टाचार के विरुद्ध बोलने वाले नेता खुद भ्रस्ट तरीके अपना कर चुनाव जीतते हैं, और अपना एक गिरोह बनाकर पार्टी और सरकार चलाते हैं। ऐसी स्थिति में भ्रस्टाचार का सतही विरोध कर, वे उसके मुख्य कारणों से जनता का ध्यान हटाते हैं और उस व्यवस्था को संरक्षित रखते हैं, जो भ्रस्टाचार को जन्म देती है। जब तक समाज में गैरबराबरी रहेगाजनता कमजोर और नेता एवं अफसरशाह मजबूत रहेंगे, ऐसे में भ्रस्टाचार समाप्त करने की बात करना, पानी पर लाठी पटकने के समान है। और जब तक जनता निर्धनसत्ताहीन हो नागरिक चेतना से वंचित रहेगी, स्वराज की बात भी करना हास्यास्पद है। आज कुछ ऐसे नेता उभरे हैं, जिनका न कोई राजनैतिक विचारधारा है, न तो राजनीतिक अनुभव है, और न ही वे दूरगामी राजनीति करना चाहते हैं। वे आनन फानन में भ्रस्टाचार विरोधी बन, सत्ता पर काबिज हो, कुछ समाजसेवा कर ( जैसे पानी, बिजली, नाला, wifi , समाजपरिवर्तन नहीं ) मसीहा बनकर सुर्खियों में बने रहना चाहते हैं।  इस किस्म के नेता कालान्तर में मोदी , राहुल, मुलायम, नीतिश के कतार में खड़े दिखाई देंगे। 

ऊपर चर्चित बातें करीब करीब पूरे देश के लिये प्रासंगिक हैं। चूँकि बिहार में राजनैतिक पहल की शुरुआत करने जा रहे हैं, जहाँ चुनाव तीन महीने बाद होने वाला है, हम अब बिहार पर केंद्रित हो बात करेंगे। बिहार में लालू प्रसाद की चर्चा तो बहुत हो चुकी है, नीतिश के दस वर्षों की चर्चा होनी चाहिये। पिछले दस सालों में जब राष्ट्रीय आर्थिक विकास दर का सर्वश्रेष्ठ युग - 7 से 8 प्रतिशत दर के कारण धन उपलब्ध था तो नीतिश कुमार ने सड़कों, पुलों का निर्माण किया।  लेकिन विकास का सर्वाधिक फायदा उनके नौकरशाह तथा ठेकेदार दरबारियों को हुआ। मनमाने एस्टीमेट बनाकर सड़कों, पार्कों, पुलों, म्यूजियम आदि के ठेकों में 12 से 15 % नौकरशाहों को, 15 से 20 % ठेकेदारों तथा उनके राजनैतिक मित्रों को लाभ पहुँचाया गया। इस प्रकार बिहार में नौकरशाहों और दलालों ने दस से पन्द्रह हज़ार करोड़ कला धन अर्जित किया। खेती करने वालों को शून्य तथा जमीन मालिकों को अनुदान (सब्सिडी ) दिया गया।  होमगार्ड के तर्ज़ पर स्कूली शिक्षकों की बहाली कर, पूरे स्कूली शिक्षा को ध्वस्त कर दिया गया। उच्च शिक्षा मजाक बन कर रह गयी। राजनीति का तौर तरीका सामंतवादी तथा खुलकर संरक्षण (patronage ) पर आधारित रहा। विभिन्न वर्गों के लिए नौकरियों में आरक्षण के प्रावधान का अपने राजनैतिक फायदे के लिए खुलकर दुरूपयोग किया गया। सड़े गले राजनैतिक तत्वों (सेवानिवृत कुख्यात अफसरों, नकली बुद्धिजीवियों, चापलूसों एवं दरबारियों ) को राज्यसभा, विधान परिषद, बोर्डों तथा निगमों में बिठाया गया। नीतिश की भ्रस्ट राजनीति से समाज में कोई बौद्धिक तथा नैतिक बदलाव नहीं आया।  कृषि उत्पादन में ऋणात्मक विकास हुआ। पुलिस और अफसरशाह निरंकुश हुए।  भ्रस्टाचार पराकाष्ठा पर पहुँच गयी।याद रहे नीतीश के साथ बी.जे.पी की सातवर्षों तग भागीदारी रही है उन्होने सत्ता का पूरा आनन्द लिया है बिना किसी विरोध के। आज वे नीतीश सरकार की जो भी आलोचना करते हैं उसके लिए वे भी समान रूप से  जिम्मेदार एवं उत्तरदायी हैं ।अतः ये सच्चाई अब स्पस्ट है की वर्त्तमान राजनैतिक ढांचा से किसी भी प्रकार का सामाजिक , आर्थिक और व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद करना पूर्ण मूर्खता होगी। और याद रहे , एक वैकल्पिक राजनैतिक ढाँचा के निर्माण की बात , बिना वैकल्पिक आर्थिक , शैक्षणिक और सामाजिक नीति के संभव ही नहीं है। अब त्याग का दिखावा, कर्तव्यों की खानापूर्ति, और जोशीले आंदोलनकारी होने का पाखण्ड करने से कुछ होने वाला नहीं है। पुराने अनसुलझे मुद्दों को सुलझाने के लिए संघर्ष को तेज़ करना होगा। नौकरशाही के चरित्र तथा संस्कृति में क्रन्तिकारी परिवर्तन के लिए लगातार आंदोलनों की लड़ी लगानी होगी।      

बिहार में तीन महीने बाद चुनाव होने वाला है। समान तरीके के कुश्ती लड़ने वाले पहलवानो के बीच दंगल होने वाला है। सब एक ही कला में माहिर। थोड़ा जातिवाद, थोड़ा धर्म, कुछ तथाकथित "धर्मनिर्पक्षता " का पाखण्ड, लूट पर आधारित विकास का आंकड़ा और बिहारी राष्ट्रवाद के नारों पर चुनाव लड़ा जाएगा।  आज की तारिख में नरेंद्र मोदी, केजरीवाल, मुलायम सिंह यादव और नीतिश कुमार सभी शहंशाह ज्यादा हैं, जननेता नहीं। 

1974 का जे पी आंदोलन तथा 2011 -12 का जनलोकपाल आंदोलन के समय राजनैतिक विकल्प निर्माण तथा व्यवस्था परिवर्तन के नारे तो अवश्य लगे परन्तु इन आंदोलनों से जन्मे "जनता पार्टी " और "आम आदमी पार्टी " ने घोषित उद्देश्यों और कार्यक्रमों को सत्ता पर काबिज होते ही बड़े निर्लज्जता से भुला दिया। आज पार्टी में आतंरिक प्रजातंत्र , स्वराज तथा पूर्ण ईमानदारी जैसे शब्दों का मखौल उड़ाया  जा रहा है।  खुल्लम खुल्ला व्यक्तिवाद के आधार पर जनता को हलकी फुलकी सुविधा दे , कॉर्पोरेट पूंजीवाद के तानाशाही को मजबूती से स्थापित किया जा रहा है। क्या हम आम लोगों , राजनैतिक चेतना वाले आम कार्यकर्ताओं को हाथ पर हाथ रख बैठ जाना चाहिए ? क्या हम समस्याओं की विशालता देख निराश हो जाएँ ? क्या ज़िंदा कौम की यही पहचान है ? मानव जाति का इतिहास है कि वो लाख विफलताओं के बावजूद हार नहीं मानता और प्रयासरत रहता है। हमें नए उत्साह से राजनैतिक विकल्प के निर्माण तथा व्यस्वस्था परिवर्तन के सघर्ष की शुरुआत करनी चाहिए और "आम आदमी (यूनाइटेड)" के नाम से एक गंभीर राजनैतिक पहल कर राजनैतिक विकल्प , वैकल्पिक आर्थिक एवं सामाजिक नीति एवं वैकल्पिक प्रशाशन की रूपरेखा तैयार कर उसे साकार रूप देने के लिए ईमानदारी और एकजुटता से संघर्षरत होना चाहिए।  

हमें "बिहार विधानसभा चुनाव 2015" में भाग लेने का कार्यक्रम बना निम्नलिखित मुद्दों पर संघर्ष करना चाहिए :-       

 १.) दो वर्षों में बिहार  के सभी आवासविहीन परिवारों को पाँच डिस्मिल जमीन मुहैय्या कराना। तीन वर्षों के भीतर भूमिसुधार के कानूनों को लागू कर भूमि चकबन्दी के काम को युध्दस्तर पर पुरा करना।

२.) एक समग्र एकीकृत कृषिनीति  बनाना जिसका उद्देश्य फलो तथा सब्जीयों का उत्पादन में  राज्य को अग्रणी बनाना तथा दलहन तेलहन पर विशेष ध्यान देना जिससे किसानों के पास नगदी बढेगा।

३.) राज्य में "कृषि विपणन निगम" (Agriculture Marketing Corporation ) बनाना जो लाभ (Profit ) के        उद्देश्य से बनाया जायेगा , जिसे बिलकुल पेशेवर तरीकों से चलाया जायेगा , जिसके "निदेशक मंडल "          (Board Of Directors ) में कोई विधायक या नौकरशाह सदस्य नहीं होगा। इस निगम का उद्देश्य                किसानो  को उत्पाद का लाभकारी मूल्य दिलाना होगा।  खुदरा (retail ) कीमत का 66 % किसान को तथा      34 % निगम की आय होगी जिससे इसका स्थापन खर्च चलाया जायेगा। सरकार इसमें 1,000 करोड़            बीज धन लगाएगी और मुख्य शेयर होल्डर होगी तथा इसके वित्तीय डायरेक्टर्स होंगे।
    
४ .) प्रारंभिक, माध्यमिक शिक्षा तथा विश्विद्यालयों में सुधार के लिए एक व्यापक शिक्षा नीति बना          स्कूलीशिक्षा तथा उच्चशिक्षा के गुणवत्ता में मौलिक सुधार लाना। तमाम शिक्षकों (नियोजित एवं अन्य )की  योग्यता की पुनः जाँच कर, अक्षमों, अयोग्यों को बाहर करना। स्कूूलों में चलाये जा रहे मिड डे मील की व्यवस्था को बदल कर इसकी जिम्मेदारी सीधे नगद स्थानांतरण के द्वारा परिवार - खास कर माताओं पर डालना ताकि बच्चे अपने साथ टिफिन बॉक्स में ज्यादा साफ़ और स्वस्थ भोजन लाएँ और खा सकें और शिक्षक अपना ज्यादा ध्यान और समय पढ़ाने के काम में लगावें। सारे परीक्षाओं को कदाचारमुक्त बनाना होगा और इसकेलिए शिक्षकों की मदद से जनअभियान चलाने का कार्यक्रम तैयार करना होगा। उच्च शिक्षा में सब्सिडी को आंशिक समाप्त कर सक्षम विद्यार्थियों (जिनके परिवार का मासिक आय 15 हज़ार रुपये प्रतिमाह या उससे ज्यादा है ) से मुनासिब फीस लेने का प्रावधान करना। वैसे भी 90 % ये विद्यार्थी मोटे रकम देकर निजी कोचिंग संस्थानों में पढ़ते हैं।

५ .) जिलाधिकारी के कार्यक्षेत्र को सीमित कर उन्हें राजस्व, भूमि-सुधार, कानून व्यवस्था तथा न्यायिक 
     कार्यों पर ध्यान केंद्रित कराना। 

६ .)  बीडीओ (Block Development Officer ) तथा सीओ (Circle Officer ) के सर्टिफिकेट देने के सारे 
      अधिकारों को ग्राम पंचायतों को सौंपना। 

७ .)  सामुदायिक पुलिसिंग (Community Policing ) के माध्यम से गावों और शहरों में सुरक्षा की जिम्मेदारी
     वार्ड (ग्राम तथा शहर ) के सदस्यों, एवं नागरिक कमिटियों तथा सदस्यों को सौंपना, और पुलिस को उनके 
     अधीन बनाना। 

८ .)  सभी ब्लॉकों तथा थानों में नागरिक कमिटी बना, पुलिस तथा ब्लॉक पर सामाजिक नियंत्रण कायम 
      करना ताकि सीओ तथा पुलिस का जुल्म बंद हो सके। 

९ .)  हत्या, अपहरण, डकैती, रेप, जबरन वसूली (extortion ), P.C Act आदि गंभीर मामलों को छोड़ 
      बाँकी सभी मामलों में अभियुक्तों को धारा  169 Cr.P.C. में संशोधन कर थाना से ही बेल देने का
      प्रावधान बनाना, जिसमें थानेदार को थाना कमिटी के सदस्यों की राय लेना अनिवार्य होगा। 

१० .) वैसे सारे लोग जिनका मासिक आय दस हज़ार रुपये तक है , को पूर्णतः मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा (दवाई के
       साथ ) प्रदान करने की निश्चित व्यवस्था करना। 

११ .) ग्राम पंचायतों में आम सभा तथा वार्ड सदस्यों की शक्ति बढ़ाना,  पंचायत की सशक्त कमिटी बनाना
       तथा मुखिया राज  को समाप्त करने के लिए कानून में आवश्यक संशोधन करना। 

१२ .) विधायकों के स्थानीय क्षेत्र फण्ड के प्रावधान को समाप्त करना , उनका वेतन एक लाख से घटाकर तीस 
      हज़ार करना , विदेश दौरा तथा अनतरदेशीय दौरों पर पूर्ण रोक लगाना , परन्तु उन्हें आमसभा , पंचायत         समीति तथा जिला परिषद में वोटिंग अधिकार के साथ सदस्यता का प्रावधान करना। 


१३.)  अतिपिछड़ी जातियों केआरक्षण के लिए बने सूची - 1 (Annexure -1) में किसी भी तरह के छेड़छाड़ को         समाप्त करना तथा अनुचित निर्णयों को समाप्त करना।  केंद्रीय सरकार की सेवा में भी अतिपिछड़ों को         पिछड़ों से अलग कर आरक्षण का कोटा निश्चित करना। 

१४.) सामाजिक आंदोलनों के लिए राजनीतिक जमीन तैयार करना।  असली धर्मनिरपेक्षता के स्थापना के              लिए जनता में बहस का अभियान चलाना। 

१५.) जबतक असंगठित क्षेत्रों के मज़दूरों का मासिक आय 15000 रु तक नहीं पहुँच जाय , सरकारी कर्मचारियों , अफसरों एवं अन्य लोगों के वेतनवृद्धि पर रोक लगनी चाहिए. 

१६.) बिहार में बुनकर समाज(मुस्लिम एवं हिन्दू) जिनकी संख्या करोड़ों में है, अतीत में प्रायः स्वावलम्बी हुआ करते थे।  आज हैंडलूम उद्योग करीब करीब समाप्ति के कगार पर है और पॉवरलूम उद्योग में भी बुनकरों का स्वामित्व तेजी से कम हो रहा है और गैरबुनकर पूंजीपतियों का स्वामित्व बढ़ता जा रहा है।  फलस्वरूप पारम्परिक बुनकर , खेतिहर मज़दूर या पॉवरलूम उद्योग मज़दूर में तेजी से परिवर्तित हो रहे हैं जहां इनको दो से तीन सौ रुपया दैनिक मजदूरी या पॉवरलूम के किराये के रूप में मिलता है. इस समस्या से निपटने के लिए हम सरकार के द्वारा कपडा खरीद को बुनकरों के द्वारा उत्पादित कपड़ों के लिए आरक्षित कर देंगे। एक हैंडलूम एंड पॉवरलूम प्रोत्साहन कारपोरेशन की स्थापना बिलकुल पेशेवर तरीकों से  कर के बुनकरों को कम  ब्याज दर पर वित्तीय सहायता पहुचाने , सूत आपूर्ति करने और उनके उत्पाद को बाजार में मार्केटिंग करने का काम करेंगे। ये कारपोरेशन मुनाफा कमा कर अपने आप को आत्मनिर्भर बनाये रखेगी। चूके सहकारिता आंदोलन राज्य में बहुत ही कमजोर और विकृत हो चूका है , इसलिए इस कारपोरेशन को बिलकुल पेशेवर बना नौकरशाही तथा राजनीतिज्ञों से मुक्त रखा जाएगा।  इसमें सरकार का बहुमत शेयर होगा और वित्तीय डायरेक्टर्स, जो वित्त या एकाउंट्स के विशेषज्ञ होंगे , को सरकार मनोनीत करेगी। यह कारपोरेशन पूर्णतया मात्र वित्तीय सहायता तथा उत्पाद मार्केटिंग तथा बिक्री तक ही सीमित रहेगी और सभी पदों पर वित्तीय एवं मार्केटिंग प्रबंधन में निपुण लोग ही नियुक्त किये जाएंगे जिनका वेतन कारपोरेशन के लाभ पर आधारित रहेगा। 

१७.) उपरोक्त कारपोरेशन के तर्ज़ पर ही सूक्ष्म व्यवसाय एवं उद्योग का प्रोत्साहन कारपोरेशन स्थापित किया जाएगा जो इनको प्रोत्साहित करने का काम करेगी और उनके लिए कम  ब्याज पर वित्त जुटाने का काम करेगी। इसे  हम बियाडा के साथ भी जोड़ दे सकते हैं। 

१८.) बिहार से पलायन करनेवाले सारे मजदूरों को सूचीबद्ध करेंगे और उनकी पूरी अद्यतन सूचना रखेंगे। और इसकी पूरी जिम्मेवारी श्रम विभाग के प्रधान सचिव को दिया जाएगा जो उन मज़दूरों के परिवारों के स्थिति के बारे में सूचनाएं जुटाते रहेंगे और उनकी मदद करेंगे। 

निवेदक,
बसंत कुमार चौधरी
(वरीय अधिवक्ता)

Human Rights Activist,Former Vice-President, PUCL, Bihar. 
Authored Several Reports Including Bhagalpur Riots, 1989
Sympathiser of Agrarian Movement in Bihar since, 1980
Pro People Legal Activist :(Important Cases Constested - Animal Husbandary 
Scam – Chara Ghotala, Bihar, Hazat Reforms, Criminalization of Politics,
Environment Issues
Former Convenor, Aam Admi Party,Bihar State Campaign Committee, 2014
मोबाइल : 09431021570, 
इ-मेल : basantkchoudhary@gmail.com


Ravi Kumar,
Secretariat Incharge,
Founder Member AAP
Former  Incharge -
IT & Social Media,
Aam Admi Party, Bihar
Mobile No. : 9973367770
E_mail : aamaadmiravi@gmail.com
Kishori Das,
AAP Lok Sabha Candidate 2014,
Sitamarhi, Bihar
Convenor-
Vanchit Mehnatkash Jan Morcha
Mob. No. : 09905209907


Hesamuddin Ansari
National Council Member,    
Aam Aadmi Party.
President,
Pasmanda Muslim Mahaz &
Co-convenor,
A.P.D.A.
Mob. No. : 09631504010
Nand Kumar Azad
FormerMember-     Bihar State Campaign Committee 2014
Former Convenor- Mithilanchal Zone
Aam Aadmi Party
Mob No : 8863851821



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